अस्पताल वालों की मनमानी जारी है। वे मरीजों के इलाज से इनकार कर रहे हैं। एक गर्भवती महिला को अचानक दर्द उठा तो परिवारवाले उसे निर्धारित अस्पताल लेकर पहुंचे। वहां स्टाफ ने भर्ती करने से इनकार कर दिया। हवाला दिया कि ओटी में सामान नहीं है। दूसरे अस्पताल दौड़े, इस बीच गर्भवती तड़पती रही। वहां भी लेने से इनकार करने पर डाक्टर को अस्पताल प्रबंधन की शिकायत कले€टर से करने की चेतावनी दी गई, तब जाकर भर्ती किया। तीन घंटे बाद महिला ने स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दिया।

गुरुवार रात 1 बजे के करीब गुमाश्ता नगर में रहने वाले सुनिल मेहता की गर्भवती पत्नी डिम्पल की अचानक तबीयत खराब हुई। अंतिम महीना चल रहा था। ऐसे में डॉ. पूनम नावलेकर को फोन लगाया। उन्होंने पूर्व निर्धारित रणजीत हनुमान मंदिर रोड पर अस्पताल में भर्ती होने को कहा। इस पर परिजन वहां पहुंचे तो ताला लगा था। गार्ड ने कहा कि अस्पताल बंद है।

इस पर परिजन ने जवाबदार से बुलाकर बात की तो कहना था कि ओटी में सामान नहीं है। ऑपरेशन करने की स्थिति बन गई तो गड़बड़ हो जाएगी। ऐसे में सुनिल ने मित्र अशोक छाबड़ा व अजय सारणा को जानकारी दी। वे माणिकबाग रोड के अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां से उन्हें इनकार कर दिया। एक तरफ वे अस्पताल वालों से जूझ रहे थे, दूसरी तरफ डिम्पल दर्द से परेशान थी। इस पर छाबड़ा ने डॉ. नावलेकर को फोन लगाया। कहना था कि वे कलेक्टर को अस्पताल की शिकायत कर लाइसेंस निरस्त कराएंगे। 

जब लगातार अस्पताल में ही जांच हो रही थी और पूर्व में ही तय हो गया था कि यहीं पर डिलेवरी होगी तो वे मरीज को लेने से इनकार कैसे कर सकते हैं। कुछ देर बाद डाक्टर ने अस्पताल प्रबंधन से बात कर भर्ती करने के लिए राजी किया। रात 3 बजे ड्पिल को भर्ती किया गया। सुबह 6 बजे उसने बच्चे को जन्म दिया। सुनिल मेहता का कहना है कि डाक्टरों को भगवान का दर्जा दिया गया है, लेकिन अस्पतालों का व्यवहार बहुत खराब है। रात कैसे गुजरी, भगवान ही जानता है। 

ऐसी स्थिति कई मरीजों के साथ हो रही है, जो सामान्य बीमारी से जूझ रहे हैं। 2-3 अप्रैल को सोनोग्राफी कराना थी, लेकिन कोई करने के लिए तैयार नहीं था। 8 अप्रैल को हो पाई, जबकि एक दिन पहले आदित्य अस्पताल में ही जनरल चेकअप करवाकर आए थे। बाद में अरिहंत अस्पताल जाने को बोला गया, जहां पर कोरोना पॉजिटिव मरीज हैं। ऐसे में कैसे जाते।